
नीतू पाण्डेय, नई दिल्ली: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे के मामले में संवैधानिक बेंच ने गुरुवार को फैसाला सुनाया दिया है. शिवसेना (उद्धव गुट) बनाम शिवसेना (शिंदे गुट) विवाद में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया और साफ कर दिया कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की सरकार बनी रहेगी. कोर्ट ने कहा, इस मामले को बड़ी बेंच में भेजा जाएगा.
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उद्धव गुट को झटका जरूर दे दिया है. लेकिन कुछ ऐसी बातें भी कही जिससे उन्हें थोड़ी राहत तो जरूर मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट का फैसला गलत था. उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा न दिया होता, तो उन्हें राहत दी जा सकती थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि उद्धव सरकार को बहाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया था, और फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया था, इसलिए उनके इस्तीफे को रद्द नहीं कर सकते.
शिंदे बनाम उद्धव मामले पर पांच जजों की बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली, पीएस नरसिम्हा शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि राज्यपाल को अपने पद पर बैठकर उन शक्तियों का इस्तेमाल करना ही नहीं चाहिए, जो शक्तियां संविधान ने उन्हें दी ही नहीं है. कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर से 16 बागी विधायकों की अयोग्यता के मुद्दे का समयसीमा के भीतर निपटारा करने के लिए भी कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम विधायको की अयोग्यता पर फैसला नहीं ले सकते. हम उद्धव ठाकरे को दोबारा बहाल नहीं कर सकते. उद्धव बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा, सरकार आएगी जाएगी लेकिन हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. उच्चतम न्यायालय के अनुसार, विधायक दल ही व्हिप नियुक्त करता है, राजनीतिक दल के एमबिलिकल को तोड़ना होगा. कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि विधायकों का समूह राजनीतिक दल से अलग हो सकता है.
उच्चतम न्यायालय ने ये भी कहा कि पार्टी द्वारा व्हिप नियुक्त किया जाना 10वीं अनुसूची के लिए महत्वपूर्ण है. कोर्ट ने कहा कि स्पीकर को केवल राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए. स्पीकर को गोगावले को व्हिप की मान्यता नहीं देनी चाहिए थी. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि शिवसेना- पार्टी के व्हिप के रूप में गोगावाले (शिंदे समूह द्वारा समर्थित) को नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था.
सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि शिंदे के बयान का संज्ञान लेने पर स्पीकर ने व्हिप कौन था, इसकी पहचान करने का काम नहीं किया. उन्हें जांच करनी चाहिए थी. गोगावाले को मुख्य सचेतक नियुक्त करने का निर्णय अवैध था. व्हिप केवल विधायी राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त किया जा सकता है.