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बिहार में नीतीश कुमार और यूपी में जयंत चौधरी के पाला बदलने के बाद INDIA गठबंधन बिखरती नजर आ रही थी. लेकिन एक बार फिर से यूपी में सपा और कांग्रेस ने हाथ मिला लिया है. वहीं कांग्रेस ने सपा के साथ 17 सीटों पर समझौता किया है. साथ ही 63 सीटों पर सपा और सहयोगी दल चुनाव लड़ेंगे. भले ही कांग्रेस और सपा के बीत सीटों को लेकर गतिरोध खत्म हो गया है लेकिन क्या इन 17 सीटों पर कांग्रेस मजबूती के साथ लड़ पाएगी. आइए जानते है कि कांग्रेस अपने इन सीटों पर किसे उतारने वाली है.
पहले तो जानते है कि वो कौन सी 17 सीटें है जो कांग्रेस के खाते में आई है. दरअसल रायबरेली, अमेठी, कानपुर नगर, वाराणसी, बांसगांव, महाराजगंज, देवरिया, फतेहपुर सीकरी, अमरोहा, गाजियाबाद, सहारनपुर, मथुरा, बुलंदशहर, सीतापुर, बारांबकी, झांसी और प्रयागराज सीट पर उम्मीदवार उतारेगी. सपा से मिली 17 में से 5 सीट ऐसी हैं, जहां 2014 या 2019 में कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवार नहीं उतारे. इसके साथ ही17 में से 7 सीट ऐसी हैं, जहां पर पिछले 15 साल से कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो रही है.
रायबरेली और अमेठी
यूपी की रायबरेली और अमेठी सीट सबसे ज्यादा चर्चा में है. दोनों सीट 2019 तक गांधी परिवार का गढ़ रहा है. हालांकि, 2019 में अमेठी सीट को बीजेपी ने कांग्रेस से छिन लिया. 2024 में रायबरेली और अमेठी में क्या होगा, इसको लेकर सबकी नजर गांधी परिवार पर है. कांग्रेस के एक धड़े का कहना है कि राहुल रायबरेली से तो प्रियंका अमेठी से चुनाव लड़ सकती हैं.
2019 में रायबरेली सीट पर सोनिया गांधी को 55 प्रतिशत वोट मिले थे. हालांकि, सोनिया ने इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है. ऐसे में इस सीट पर राहुल या प्रियंका के लड़ने की चर्चा है. बात अमेठी सीट की करें तो यह सीट 2019 तक राहुल गांधी के पास था, लेकिन बीजेपी के स्मृति ईरानी ने 2019 में उनसे यह सीट छिन लिया. चर्चा है कि राहुल या प्रियंका इस सीट पर चुनाव लड़ सकते हैं.
प्रयागराज
उत्तर प्रदेश की प्रयागराज सीट पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु का गृह क्षेत्र है. कांग्रे द्वारा इस सीट पर दावेदारी का एक यह भी कारण है. हालांकि, प्रयागराज सीट पर बढ़िया परफॉर्मेंस करना कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है. 2009 में कांग्रेस के श्याम कृष्ण पांडे को करीब 6 प्रतिशत वोट मिले थे. 2014 में पार्टी ने नंद गोपाल नंदी को मैदान में उतारा, लेकिन नंदी भी सफल नहीं हो पाए. उन्हें सिर्फ 11.59 प्रतिशत वोट मिले.
वाराणसी
उत्तर प्रदेश की हॉट सीट वाराणसी से कांग्रेस के सिंबल पर इस बार मैदान में कौन होगा, यह गुत्थी अभी तक उलझी है. पिछले 2 चुनाव में यहां से अजय राय को कांग्रेस उतारती रही है, लेकिन राय रिजल्ट देने में नाकाम रहे हैं. 2014 में राय को 7.34% तो 2019 में 14.48% वोट मिले थे. इस सीट से वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं. तीसरी बार भी उन्हीं के लड़ने की संभावनाएं हैं.
महाराजगंज
कांग्रेस ने महाराजगंज लोकसभा सीट पर भी लड़ने का फैसला किया है. समझौते के तहत सपा ने उसे यह सीट दे भी दी है. 2009 में महारजगंज सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी को जीत मिली थी. हालांकि, उसके बाद से कांग्रेसियों की स्थिति लगातार यहां खराब ही है. 2014 में कांग्रेस उम्मीदवार हर्षवर्धन को 5.42% वोट मिले थे. 2019 में पार्टी ने टीवी एंकर सुप्रिया श्रीनेते को मैदान में उतारा था. श्रीनेते 5.92% वोट लाने में सफल हुई थीं.
देवरिया
समझौते के तहत कांग्रेस ने देवरिया सीट अपने पाले में ली है. हालांकि, यहां का आंकड़ा और वस्तुस्थिति कांग्रेस के पक्ष में नहीं है. 2009 से लेकर अब तक कांग्रेस ने हर चुनाव में यहां उम्मीदवार उतारे, लेकिन हर बार कांग्रेस उम्मीदवार की यहां जमानत जब्त हुई. 2009 में कांग्रेस ने यहां बालेश्वर यादव को उम्मीदवार बनाया था. यादव को सिर्फ 12 प्रतिशत वोट ही मिल पाया. 2014 में पंजा के सिंबल पर सबा कंवर ने किस्मत अजमाया, लेकिन कंवर की भी जमानत जब्त हो गई. उन्हें सिर्फ 3.89 प्रतिशत वोट मिले.
सीतापुर
सपा से समझौते के तहत कांग्रेस को सीतापुर सीट भी मिली है. सीतापुर सीट पर भी कांग्रेस पिछले 10 साल से फिसड्डी ही साबित हो रही है. 2019 में कांग्रेस ने कैसर जहां को सीतापुर से कैंडिडेट बनाया था. जहां को 9.02 प्रतिशत वोट मिले थे. 2014 में वैशाली अली चुनाव को पार्टी ने मैदान में उतारा था, उन्हें 2.83 प्रतिशत वोट ही मिले थे. 2009 में रामलाल राही पंजा सिंबल पर चुनाव मैदान में थे. राही जीत तो नहीं पाए, लेकिन जमानत बचाने में सफल हो गए थे.
मथुरा
जयंत के इंडिया गठबंधन में रहते हुए यह सीट आरएलडी के खाते में थी, लेकिन जैसे ही जयंत ने इंडिया से नाता तोड़ा, वैसे ही अखिलेश ने इसे कांग्रेस के हिस्से में डाल दिया. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस लीडरशिप ने संख्या बढ़ाने के लिहाज से यह सीट अपने हिस्से में ले लिया. 2009 में मथुरा सीट से कांग्रेस ने मानवेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया था. मानवेंद्र 7.9 प्रतिशत वोट ला पाए थे. 2014 में पार्टी ने यहां से किसी को नहीं लड़ाया. 2019 में पंजा सिंबल पर महेश पाठक मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें सिर्फ 2.7 प्रतिशत वोट ही मिले.
गाजियाबाद
गाजियाबाद सीट पर से वर्तमान में बीजेपी के रिटा. जनरल वीके सिंह सांसद हैं. इंडिया गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में आई है. 2009 का चुनाव छोड़ दिया जाए, तो 2014 और 2019 में यहां कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो चुकी है. 2014 में गाजियाबाद सीट से कांग्रेस के राज बब्बर मैदान में थे, उन्हें सिर्फ 14.25 प्रतिशत वोट मिला था. 2019 में डॉली शर्मा को पार्टी ने मैदान में उतारा. डॉली को 7.25 प्रतिशत वोट मिले.
बुलंदशहर
1984 तक गढ़ रहा बुलंदशहर सीट पर वर्तमान में कांग्रेस काफी कमजोर स्थिति में है. यहां पार्टी का संगठन भी ठीक ढंग से सक्रिय नहीं है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बुलंदशहर के 5 सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार को कुल 20 हजार वोट ही मिले थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बंशी सिंह को उम्मीदवार बनाया था. सिंह सिर्फ 2.62 प्रतिशत वोट लाने में सफल हुए. 2014 में कांग्रेस ने बुलंदशहर से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा. 2009 में कांग्रेस के सिंबल पर देवी दयाल चुनाव लड़े थे, लेकिन उनकी भी जमानत जब्त हो गई.
झांसी
सपा से समझौते के तहत कांग्रेस को झांसी की सीट मिली है. झांसी यूपी और एमपी बॉर्डर पर स्थित है. झांसी कांग्रेस की स्थानीय इकाई पिछले 3 साल से आपसी कलह से जूझ रही है. 2023 में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने झांसी कांग्रेस में बलवान सिंह को जिले का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया था, लेकिन विवाद होने पर हाईकमान ने इसे रद्द कर दिया. 2009 में झांसी सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी. झांसी के तत्कालीन सांसद प्रदीप जैन को मनमोहन सरकार में मंत्री भी बनाया गया था, लेकिन 2014 के बाद से पार्टी की यहां स्थिति काफी खराब है.
अमरोहा
पश्चिमी यूपी की अमरोहा लोकसभा सीट इन दिनों काफी सुर्खियों में हैं. यह सीट इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के हिस्से में आई है. कांग्रेस यहां से लंबे वक्त से चुनाव नहीं जीत पा रही है. 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से नफीस अब्बासी को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन अब्बासी सिर्फ 2.4 प्रतिशत वोट ला पाए. 2014 में कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारे. 2019 में कांग्रेस के सिंबल पर सचिन चौधरी ने किस्मत अजमाई. सचिन को 1.8 प्रतिशत वोट मिले. कांग्रेस इस बार बीएसपी के दानिश अली को अपने पाले में लाकर बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की रणनीति पर काम कर रही है. 2019 में दानिश अली ने बीजेपी के कंवर सिंह तंवर को 63 हजार वोटों से हराया था.
बांसगांव
गोरखपुर की बांसगांव सीट भी कांग्रेस के खाते में आई है. 2019 में कांग्रेस ने इस सीट से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था. इसके बावजूद यह सीट किस फॉर्मूले के तहत ली गई है. स्थानीय नेताओं को समझ नहीं आ रही है. 2009 में बांसगांव सीट से कांग्रेस के महाबीर प्रसाद मैदान में उतरे थे और उन्हें सिर्फ 11.77 प्रतिशत वोट मिला था. 2014 में पार्टी ने संजय कुमार को मैदान में उतारा, तो उनकी भी जमानत जब्त हो गई. संजय कुमार को 2014 में 5.77 प्रतिशत वोट मिले थे. 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान बांसगांव की 5 में से 4 सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार को सिर्फ 7 हजार वोट मिले थे.
बाराबंकी
कांग्रेस 2024 के चुनाव में बाराबंकी सीट से भी प्रत्याशी उतारेगी. गठबंधन में उसे यह सीट समझौते में मिली है. बाराबंकी सीट कद्दावर नेता पीएल पुनिया का गढ़ रहा है, लेकिन 2014 में बीजेपी ने उसमें सेंध लगा दी. मुस्लिम और रावत बहुल यह सीट दलितों के लिए रिजर्व है. माना जा रहा है कि बाराबंकी सीट से पीएल पुनिया के बेटे तनुज को टिकट मिल सकता है. तनुज 2019 में भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2019 में तनुज को 13.82 प्रतिशत वोट मिले थे. ऐसे में इस बार पुनिया परिवार के लिए यह सीट निकालना मुश्किल भरा हो सकता है.
सहारनपुर
वर्तमान में सहारनपुर सीट बहुजन समाज पार्टी के पास है. सपा ने गठबंधन के तहत यह सीट कांग्रेस को दे दिया है. मुस्लिम बहुल सहारनपुर में कांग्रेस पिछले 40 सालों से जीत नहीं पाई है. हालांकि, यहां उसका जनाधार अन्य जिलों के मुकाबले बेहतरीन है. कांग्रेस सिंबल पर यहां से इमरान मसूद के लड़ने की चर्चा है. मसूद को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है. 2022 के चुनाव से पहले मसूद कांग्रेस छोड़ साइकिल पर सवार हो गए थे. फिर इसके बाद बीएसपी में भी चले गए. हालांकि, लोकसभा से पहले कांग्रेस में लौट आए. कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी टेंशन बीएसपी का कैंडिडेट रहने वाला है. मायावती अगर मुस्लिम कैंडिडेट उतारती है, तो कांग्रेस का यहां गणित गड़बड़ हो सकता है.
फतेहपुर सीकरी
फतेहपुर सीकरी सीट भी कांग्रेस के खाते में आई है. 2019 में कांग्रेस यहां दूसरे नंबर पर रही थी. कांग्रेस के राज बब्बर को 16.59 प्रतिशत वोट मिले थे. 2009 में बब्बर को इस सीट से 28.57 प्रतिशत वोट मिले थे. इस बार सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की है कि क्या राज बब्बर चुनाव लड़ेंगे? क्योंकि 2019 चुनाव के बाद से ही बब्बर साइडलाइन चल रहे हैं. आगरा जिले की फतेहपुर सीट से वर्तमान में बीजेपी के राजकुमार चाहर सांसद हैं. 2022 में बीजेपी ने जिले की सभी पांचों विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी.
कानपुर
कानपुर सीट वर्तमान में बीजेपी के पास है और अगले चुनाव में यहां से बीजेपी के सिंबल पर किसी बड़े चेहरे के चुनाव लड़ने की चर्चा है. कांग्रेस से यहां श्रीप्रकाश जायसवाल चुनाव लड़ते आए हैं, लेकिन इस बार उनको लेकर सस्पेंस हैं. कानपुर सीट मुस्लिम, ब्राह्मण और वैश्य बहुल है. ऐसे में बहुत कुछ बीजेपी के कैंडिडेट पर निर्भर करेगा. 2019 के चुनाव में कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल को 37 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन वे सत्यदेव पचौरी से चुनाव हार गए. कानपुर में विधानसभा की कुल 5 सीटें हैं, जिसमें से 2022 में सपा को 3 और बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी.