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500 साल के लंबे संघर्ष के बाद 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। राम मंदिर को लेकर पहले से ही राजनीतिक बयानबाजी का दौर चल रहा था, वहीं इस बीच शंकराचार्य का नाम खूब सुर्खियों में है। खबर सामने आई है कि कुछ शकंराचार्य इस कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगे। शंकराचार्यों का कहना है कि हम न तो राम मंदिर कार्यक्रम के खिलाफ हैं और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध कर रहे हैं। बस यह कार्यक्रम सनातन धर्म के अनुसार नहीं हो रहा है। अब कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि, आखिर ये शंकराचार्य है कौन और सनातन धर्म में उनके पद की अहमियत क्या है। आइए जानते हैं शंकराचार्यों के बारे में...
कौन होते हैं शंकराचार्य?
शंकराचार्य सनातन धर्म में सर्वोच्च गुरू का पद होता है। भारत में चार मठों में चार शंकराचार्य होते हैं। सनातन धर्म में इनका बहुत महत्व होता है। शंकराचार्य पद की शुरुआत आदी शंकराचार्य से मानी जाती है, जो एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरू थे। आदि शंकराचार्य हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में से एक थे। इन्होंने ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत में चार अलग-अलग क्षेत्रों में चार मठों की स्थापना की थी। इसके बाद से ही शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही हैं। शंकराचार्य बनने के लिए कुछ विशेष योग्यता भी जरूरी होती है। इसके लिए व्यक्ति को त्यागी, ब्राह्मण, ब्रह्मचारी, दंडी, संन्यासी, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता होना पड़ता है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भाग लेने से चारो मठों के शंकराचार्य ने मना कर दिया उनके नाम है - शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती, शंकराचार्य सदानंद सरस्वती, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, और शंकराचार्य जगद्गुरु भारती।
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शंकराचार्यों की नाराजगी के मुद्दे
ज्योतिष्पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज का कुछ दिन पहले ही राम मंदिर पर बड़ा बयान सामने आया। शंकराचार्यों ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय को लेकर सवाल उठाए हैं। सामने आए बयान में कहा गया है कि चारों शंकराचार्य वहां पर नहीं जा रहे हैं। साथ ही बयान में कहा कि शंकराचार्यों का यह दायित्व है कि वे शास्त्रविधि का पालन करें और करवाएं। राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा में शास्त्र विधि की उपेक्षा हो रही है। मंदिर अभी पूरा बना नहीं है और प्रतिष्ठा की जा रही है। आधे अधूरे मंदिर में भगवान को स्थापित किया जाना धर्म सम्मत नहीं है। पुराणों में लिखा है कि देवता तब प्रतिष्ठित होते हैं, जब विधिवत हों। अगर ये ढंग से ना किया जाए तो देवी देवता क्रोधित हो जाते हैं। इसलिए इस अवसर पर जाना उचित नहीं है।
TNP न्यूज़ से निवेदिता राय की रिपोर्ट