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15 जनवरी यानी आज अपने जन्मदिन के अवसर पर मायावती ने एक बड़ा ऐलान किया है जिससे सियासी हलकों में चर्चा गर्म हो गई है... मायावती ने साफ कर दिया कि अब वो किसी भी पार्टी से आने वाले लोकसभा चुनाव में गठबंधन नहीं करेंगी... मायावती के ये तेवर उनकी पुरानी राजनीति की ओर संकेत कर रहे हैं... लेकिन सवाल ये है कि मायावती ने जिस पुरानी राजनीति का संकेत दिया है... तो क्या उनका अपना पुराना कोर वोट बैंक भी उनके साथ लौटेगा... सवाल ये भी है कि मायावती की "एकला चलो नीति" से किसे फायदा होने वाला है?
आखिरकार खुल गई मायावती की बंद मुट्ठी. लंबे समय से बीजेपी और इंडिया गठबंधन दोनों को मायावती की चुनावी चाल का इंतजार था... विपक्षी गठबंधन इंडिया पुरजोर कोशिश में था कि बीएसपी गठबंधन का हिस्सा बने... और बीजेपी आलाकमान ऐसा ना होने की जुगत में था... आखिरकार अपने जन्मदिन पर मायावती ने कर दिया दो टूक ऐलान...
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पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती को मिली थी 10 सीटें
मायावती के अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने के फैसले के पीछे उनकी क्या रणनीति है... अगर उसको समझने की कोशिश की जाए तो पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती को 10 सीटें मिली थी... और बीएसपी का वोट करीब 21 फीसदी रहा था... हालांकि 2019 में बीएसपी ने एसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था... जबकि 2014 में अकेले लड़ने वाली बीएसपी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी... हालांकि उनका वोट प्रतिशत 19 फीसदी रहा था... अगर 2022 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो उनकी पार्टी को मात्र एक ही सीट मिली... जबकि उनका वोट प्रतिशत 20 फीसदी से भी नीचे रहा... GFX OUT अब अगर मायावती अपने लगातार छिटकते वोट बैंक को दोबारा हासिल नहीं कर पाई... तो मायावती का ये फैसला उनके खुद के लिए जोखिमभरा हो सकता है...
गठबंधन का एकजुट होना काफी मुश्किल
माना जा रहा है कि मायावती की "एकला चलो नीति" से विपक्ष को भी घाटा हो सकता है... जाहिर है कि कांग्रेस लगातार मायावती को गठबंधन में शामिल करने की कोशिश में थी... क्योंकि कांग्रेस जानती है... मायावती का उत्तर प्रदेश में जो वोट बैंक है अगर वो गठबंधन के साथ आता है... तो शायद महागठबंधन की कुछ दाल गल सके... लेकिन ऐसा नहीं हुआ... मायावती ने साफ कर दिया कि वो अकेले चुनाव लड़ेंगी... ऐसे में विपक्षी गठबंधन का एकजुट होना काफी मुश्किल नजर आ रहा है. उधर बीजेपी भी लगातार इसी कोशिश में थी. कि मायावती गठबंधन में शामिल ना हो... बीएसपी के अलग चुनाव लड़ने से बीजेपी को विपक्षी वोट बंटने का फायदा मिलेगा... और 2014 के लिए उसकी राह आसान हो सकती है...
TNP न्यूज़ से सुहानी की रिपोर्ट.