- 34ºc, Sunny
- Thu, 21st Nov, 2024
चुनावी बॉण्ड योजना’ को उच्चतम न्यायालय द्वारा बृहस्पतिवार को ‘असंवैधानिक’ बताकर निरस्त किये जाने से कई साल पहले तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे वैध और पारदर्शी करार दिया था. 2017 का बजट पेश होने से सिर्फ चार दिन पहले, शनिवार के दिन एक वरिष्ठ टैक्स अधिकारी को वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किए जाने वाले दस्तावेज में एक गड़बड़ी नज़र आई. 1 फरवरी, 2017 को तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली अपने बजट भाषण में इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा करने वाले थे. इलेक्टोरल बॉन्ड यानि एक विवादास्पद लेकिन कानूनी तौर पर स्वीकृत ऐसा औजार जिसके जरिए बड़े कारपोरेशन और अन्य कानूनी संस्थाएं अपनी पहचान उजागर किए बिना असीमित मात्रा में धन राजनीतिक दलों को मुहैया करवा सकते हैं. लेकिन इसमें एक अड़चन थी.
आरबीआई ने अपना मुखर विरोध दर्ज कराते हुए इस मेल का जवाब दिया. आरबीआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा, भारतीय मुद्रा पर भरोसा टूटेगा और नतीजतन केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा. आरबीआई के पास इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध करने के पर्याप्त कारण थे, और यह बात उसके द्वारा 30 जनवरी, 2017 को सरकार को दिए गए उसके जवाब में साफ़ तौर पर दिखती है:
आमतौर पर आरबीआई द्वारा इस तरह के कड़े विरोध के बाद उम्मीद थी कि कोई भी प्रशासनिक गतिविधि रुक जाएगी. जब भी सरकार किसी कानून में संशोधन करती है तो पहले उस प्रस्तावित संशोधन से प्रभावित होने वाले मंत्रालय, सरकारी विभागों से औपचारिक परामर्श करती है साथ ही उनसे भी जिनका उस विषय पर कोई विशिष्ट मत हो. लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में सरकार के शीर्ष कर्ताधर्ताओं ने पहले से ही इसे लागू करने का मन बना रखा था. जिस दिन आरबीआई ने वित्त मंत्रालय को चिट्ठी लिखी उसी दिन आनन-फानन में तत्कालीन राजस्व सचिव हंसमुख अधिया ने एक पैराग्राफ का संक्षिप्त जवाब भेज कर आरबीआई की सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया. वित्त सचिव तपन रे ने भी उसी दिन अधिया के विचार से अपनी सहमति जताई. इस तरह फाइल बिजली की गति से पास हो गई और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस पर तुरंत हस्ताक्षर कर दिए.
विधेयक 2017 के पारित होने साथ ही ये प्रस्ताव कानून बन गया. आरबीआई अधिनियम में परोक्ष तौर पर अहानिकारक दिख रही यह छेड़छाड़ और संशोधन बेहद जल्दबाजी और कानूनी पारमर्श के अभाव में लिया गया. इस कदम ने भारत की राजनीति व्यवस्था में बड़े व्यावसायिक घरानों के प्रभाव को वैध कर दिया और भारतीय राजनीति में विदेशी पैसे के अबाध प्रवाह का द्वार खोल दिया.
TNP न्यूज़ से DIMPLE YADAV की रिपोर्ट.