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- Thu, 21st Nov, 2024
Delhi Pollution: राजधानी दिल्ली समेत पूरे एनसीआर में हवा लगातार जहरीली होती जा रही है. जिससे लोगों का सांस लेना बेहाल हो रहा है शुक्रवार को AQI 405 दर्ज किया गया, जो 419 से थोड़ा ही कम था. दरअसल दिवाली के बाद प्रदूषण कम होने का नाम ही नही ले रहा है. जिससे लोगों को सांस लेने में तकलीफ, आखों में जलन और गले में खराश की परेशानियां बढ़ती ही जा रही रही है.
IIT दिल्ली में AQI 407 दर्ज
एक रिपोर्ट के मुताबिक, (18 नवंबर) यानी आज सुबह का औसत AQI 398 के दर्ज किया गया. कई इलाकों में धुंध इतनी ज्यादा बढ चुकी है की पास का दिखाई देना भी मुश्किल हो गया है. दिल्ली विश्वविद्यालय क्षेत्र में AQI 438 दर्ज किया गया है, जो गंभीर रुप में फैलता जा रहा है. जिसमें कुछ क्षेत्रों का बहुत बुरा हाल है. जिसमें लोधी रोड AQI 372 बहुत खराब मात्रा में है. मथुरा रोड में AQI 339 है. IIT दिल्ली के क्षेत्र में AQI 407 दर्ज किया गया है, जबकि पूसा में ये AQI 398 दर्ज हुआ है जो समाज के लिए बहुत नुकसान दायक साबित हो रहा है.
2018 में कराई थी कृत्रिम वर्षा
एक रिपोर्ट के मुताबिक मौसम विभाग ने 24 नवंबर के आस-पास दिल्ली के ऊपर बादलों का जमघट का अनुमान किया. ऐसे में वायु गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं दिख रहा. तो कृत्रिम वर्षा को हरी झंडी दी जानी चाहिए. हांलाकि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा कराने की योजना पांच वर्ष पहले 2018 में बनाई गई थी. उस वक्त इसे लेकर पूरी तैयारीयां भी कि गई थी.
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प्रदूषण को लेकर IIT Kanpur ने दिया प्रस्ताव
आइआइटी कानपुर ने इस मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली के उपराज्यपाल को अलग-अलग प्रस्ताव पेश कियें. माना जा रहा है कि एक-दो दिनों में वायु की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है.
खर्च होंगे 50 लाख रुपये
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय मुताबिक, कृत्रिम वर्षा कराने पर तकरीबन 50 लाख रुपये खर्च होंगे. कृत्रिम वर्षा में इस्तेमाल होने वाले विशेष तरह का मॉडीफाइड विमान आइआइटी कानपुर के पास है, जिसका वह अपने शोध में इस्तेमाल करता है. कृत्रिम वर्षा कराने के लिए विमान का ईंधन, बादलों के बीच छिड़के जाने वाले रसायन, पायलट की फीस शामिल हैं. आपको बता दें इससे पहले ऐसा विशेष विमान सिर्फ इसरो के पास हुआ करता था. लेकिन अब आइआइटी कानपुर ने ऐसा विमान खरीद लिया है.
कैसे होती है कृत्रिम वर्षा
IIT कानपुर के विज्ञानी कि मानें तो कृत्रिम वर्षा के लिए आसमान में पहले से मौजूद बादलों में सिल्वर आयोडाइड, सूखे बर्फ और नमक को फैलाया जाता है. जिसकी वजह से रासायनिक क्रिया होती है और आसमान में मौजूद बादल घटा का रुप ले लेते है. जिसकी वजह से आसमान बरसने लगते है. इसे गंभीर वायु प्रदूषण की स्थिति को निपटने में इसका इस्तेमाल किया जाता है.