
एक समय था जब भारत और अमेरिका के रिश्तों को दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी लोकतंत्रों के बीच प्राकृतिक साझेदारी माना जाता था। लेकिन आज यह भरोसा पहले जैसा मजबूत नहीं दिख रहा।
इस दूरी की वजह है आपसी अविश्वास, राजनीतिक अहंकार और एक ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति का रवैया, जो भारत की संप्रभुता को महत्व देने के बजाय अपनी तारीफ सुनने में ज्यादा दिलचस्पी रखता है। यह राष्ट्रपति अक्सर अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को भी दांव पर लगा देता है। इसी वजह से अमेरिका के कई देशों से रिश्ते बिगड़े हैं भारत भी उनमें से एक है।
ट्रंप का नोबेल जुनून
इस मतभेद की जड़ है डोनाल्ड ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार पाने का जबरदस्त शौक। वे बार-बार भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का मुद्दा उठाते रहे और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खुद को नोबेल के लिए नॉमिनेट करने की भी मांग कर बैठे। लेकिन इस बार ट्रंप की यह कोशिश भारत के मजबूत रुख से टकरा गई।
न्यूयॉर्क टाइम्स का खुलासा
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 17 जून 2025 को ट्रंप ने पीएम मोदी को फोन किया। करीब 35 मिनट चली इस बातचीत में ट्रंप ने मोदी से आग्रह किया कि वे उन्हें नोबेल प्राइज के लिए नॉमिनेट करें। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान उन्हें नामित करने जा रहा है क्योंकि भारत-पाकिस्तान सीजफायर कराने में उनका योगदान रहा है।
मोदी की कड़ी प्रतिक्रिया
ट्रंप की यह बात सुनकर मोदी नाराज हो गए। उन्होंने साफ कह दिया कि सीजफायर भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बातचीत से हुआ है, इसमें न तो अमेरिका और न ही ट्रंप की कोई भूमिका रही है। यहीं से भारत-अमेरिका संबंधों में खटास बढ़नी शुरू हुई।
बदले की कार्रवाई
मोदी के इनकार के बाद ट्रंप ने गुस्से में भारत पर टैरिफ बढ़ा दिए। पहले 25% और फिर अतिरिक्त 25% शुल्क लगा दिया गया। इसके साथ ही उन्होंने भारत में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में शामिल होने से भी मना कर दिया।
- YUKTI RAI