
हर साल आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करने की अंतिम तारीख आने के साथ ही करदाताओं में हलचल शुरू हो जाती है। पोर्टल पर तकनीकी दिक्कतें, सर्वर डाउन होना और अंतिम समय की भीड़ अक्सर लोगों को परेशानी में डाल देती हैं। यही वजह है कि सरकार समय-सीमा को बढ़ाने पर विचार करती है। इस साल भी सरकार ने करदाताओं को थोड़ी राहत दी है और आईटीआर की अंतिम तारीख को 31 जुलाई 2025 से बढ़ाकर 15 सितंबर 2025 कर दिया गया था वहीं अब समय सीमा एक दिन बढ़ाकर 16 सितंबर कर दी है।
आयकर रिटर्न (ITR) क्या है?
आयकर रिटर्न (ITR) एक आधिकारिक दस्तावेज है जिसमें व्यक्ति या कंपनी अपनी सालाना आय, खर्च, निवेश और टैक्स से जुड़ी जानकारी आयकर विभाग को देती है। यह न सिर्फ टैक्स कैलकुलेशन और रिफंड तय करने में मदद करता है, बल्कि सरकार को लोगों की आय पर नज़र रखने और पारदर्शिता बनाए रखने का अवसर भी देता है। अगर आपकी कमाई एक तय सीमा से ज़्यादा है, तो ITR फाइल करना आपके लिए अनिवार्य है।
लेट फाइलिंग पर जुर्माना
अगर आप समय-सीमा चूक जाते हैं तो धारा 234F के तहत जुर्माना लगेगा।
जिनकी सालाना आय ₹5 लाख से कम है, उन्हें केवल ₹1000 का जुर्माना देना होगा।
जिनकी सालाना आय ₹5 लाख से अधिक है, उन पर ₹5000 का जुर्माना लगेगा।
इसके अलावा, देरी से रिटर्न भरने पर धारा 234A, 234B और 234C के तहत अतिरिक्त ब्याज भी चुकाना पड़ सकता है।
क्यों जरूरी है समय पर ITR फाइल करना?
समय पर ITR दाखिल करने से आपको किसी भी जुर्माने से बचने का मौका मिलता है। साथ ही, अगर आपने ज्यादा टैक्स जमा किया है तो उसका रिफंड भी जल्दी मिल जाता है। इसके अलावा, लोन या वीजा जैसी कई औपचारिकताओं के लिए ITR एक अहम दस्तावेज माना जाता है।
आईटीआर फाइल करने के लिए किन-किन दस्तावेजों की जरूरत होगी?
अगर आप आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं, तो पहले से जरूरी दस्तावेज इकट्ठा करना बहुत ज़रूरी है। बिना सही डॉक्यूमेंट्स के रिटर्न भरना मुश्किल हो सकता है और गलत जानकारी देने पर परेशानी भी हो सकती है।
सैलरी पाने वाले लोगों के लिए सबसे अहम डॉक्यूमेंट है Form 16। यह फॉर्म आपके नियोक्ता (Employer) द्वारा जारी किया जाता है और इसमें आपकी सैलरी, कटे हुए टैक्स (TDS) और अन्य डिटेल्स दर्ज होती हैं। इसके अलावा, Form 26AS भी ज़रूरी है। यह टैक्स क्रेडिट स्टेटमेंट है जिसमें आपके नाम पर जमा किया गया टैक्स दिखता है।
इसके साथ ही, आपके बैंक खातों की पूरी जानकारी भी तैयार होनी चाहिए, क्योंकि बैंक से होने वाली इंटरेस्ट इनकम (ब्याज की आय) को भी रिटर्न में दिखाना होता है।
अगर आपने किसी भी तरह का निवेश (Investment) किया है, जैसे कि एलआईसी, पीपीएफ, म्यूचुअल फंड, या टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट, तो उनके प्रूफ (Proof) भी लगाने होंगे। यह आपको सेक्शन 80C या अन्य टैक्स बेनिफिट क्लेम करने में मदद करेंगे।
इसके अलावा, Annual Information Statement (AIS) और Taxpayer Information Summary (TIS) जैसे दस्तावेज भी जरूरी हैं। इन रिपोर्ट्स में आपकी सभी वित्तीय गतिविधियों का ब्यौरा होता है, जैसे बैंक ट्रांजैक्शन, सिक्योरिटीज में निवेश, डिविडेंड, ब्याज आदि।