
गणेश चतुर्थी के चौथे दिन संतान सप्तमी का व्रत रखा जाता है। यह व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को आता है। वर्ष 2025 में संतान सप्तमी शनिवार, 30 अगस्त को मनाई जाएगी। इसे ललिता सप्तमी भी कहा जाता है।
जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह व्रत संतान सुख और संतान की लंबी आयु व उन्नति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत व पूजा करने से बच्चों पर आने वाले संकट दूर होते हैं और उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। विवाहित महिलाएं विशेष रूप से अपने बच्चों के स्वास्थ्य और भलाई के लिए यह उपवास करती हैं।
संतान सप्तमी 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त
सप्तमी तिथि प्रारंभ: 29 अगस्त 2025, रात 08:21 बजे
सप्तमी तिथि समाप्त: 30 अगस्त 2025, रात 10:46 बजे
व्रत व पूजा का शुभ समय: 30 अगस्त को सुबह 11:05 से दोपहर 12:47 बजे तक
संतान सप्तमी पूजा विधि
सबसे पहले सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें। पूजा के लिए चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर शिव परिवार की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद कलश में जल भरकर, उस पर नारियल और आम के पत्ते रखें। पूजा स्थल पर देसी घी का दीपक जलाएं और फूल, चावल, पान-सुपारी अर्पित करें। फिर भगवान शिव और माता पार्वती को वस्त्र व श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं। भगवान को पूरी-खीर का भोग लगाएं।
इसके बाद संतान सप्तमी व्रत कथा का पाठ करें और इसके बाद भगवान की आरती करें। अगले दिन प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
पूजन मंत्र
ॐ पार्वतीपतये नमः।
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
पुत्र-पौत्रादि समृद्धिं देहि मे परमेश्वरी।।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
संतान सप्तमी व्रत कथा
धार्मिक ग्रंथों में संतान सप्तमी का महत्व बताया गया है। कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के ज्येष्ठ युधिष्ठिर को इस व्रत की महिमा बताई।
प्राचीन समय में अयोध्या में नहुष नामक राजा राज करते थे। उनकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। एक दिन वह अपनी सहेली रूपमती के साथ सरयू नदी पर स्नान करने गई, जहां उन्होंने महिलाओं को संतान सप्तमी व्रत करते देखा।
रूपमती ने श्रद्धा से यह व्रत करना शुरू किया, जबकि रानी चंद्रमुखी कभी करतीं और कभी भूल जातीं। मृत्यु के बाद, रूपमती ने अपने सत्कार्य के फल से अगले जन्म में आठ संतानें प्राप्त कीं। वहीं, रानी चंद्रमुखी को पूर्व जन्म की लापरवाही के कारण संतान सुख नहीं मिला।
बाद में, रानी ने अपनी गलती स्वीकार कर संतान सप्तमी व्रत करना शुरू किया। इसके प्रभाव से उनकी भी गोद भर गई और संतान सुख प्राप्त हुआ।
संतान सप्तमी व्रत संतान सुख, संतान की रक्षा और उनके जीवन में उन्नति की कामना से जुड़ा हुआ है। इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने और कथा सुनने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
-Yukti Rai