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बिहार में साल के आखिर तक विधानसभा के चुनाव होने की उम्मीद है। ऐसे में राज्य का चुनावी पारा चढ़ चुका है। राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। सभी पार्टियां जनता को लुभाने और अगले पांच सालों का प्लान समझाने में लग गई हैं। ऐसे में हम बिहार की फुलवारी विधानसभा सीट पर नजर डालते हैं।
फुलवारी का इतिहास
फुलवारी बिहार के पटना जिले में स्थित एक नगर है। कहा जाता है कि पहले इस क्षेत्र में व्यापक वनस्पति और फूलों की बहार थी, जिसके कारण इसका नाम फुलवारी पड़ा। पूर्व में यह क्षेत्र मगध का हिस्सा और मौर्य तथा गुप्त साम्राज्य के अधीन रहा है। जिसके बाद दिल्ली सल्तनत, मुस्लिम शासकों और उसके बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया था।
दो ब्लॉकों में बंटा है फुलवारी विधानसभा क्षेत्र
फुलवारी विधानसभा सीट पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र का एक हिस्सा है और अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। यह क्षेत्र मुख्यतः दो ब्लॉक- फुलवारी और पुनपुन में बंटा हुआ है। बता दें कि फुलवारी ब्लॉक टना सदर उपखंड और पुनपुन ब्लॉक मसौढ़ी उपखंड का हिस्सा है।
बता दें कि जहां एक तरफ पुनपुन का नाम प्राचीन और पवित्र पुनपुन नदी से पड़ा है और यह ब्लॉक हिंदुओं के लिए एक प्रमुख श्राद्ध तीर्थ स्थल है। वहीं दूसरी तरफ फुलवारी को फुलवारी शरीफ भी कहा जाता है और यह स्थान इस्लामी शिक्षा और सूफी परंपरा का केंद्र रहा है। फुलवारी ब्लॉक ऐतिहासिक रूप से स्लिम समुदाय के लिए महत्वपूर्ण रहा है।
2011 की जनगणना
2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति (SC) कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 85,481 है, जो 23.45% है। वहीं, अनुसूचित जनजाति (ST) की कुल संख्या मात्र 328, जो कुल मतदाताओं का केवल 0.09% है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 54,314 है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 14.9% है।
मतदाता और मतदान केंद्र की संख्या
फुलवारी (एससी) विधानसभा में ग्रामीण मतदाताओं की संख्या लगभग 2,68,544 है, जो कुल आबादी का 73.67% हिस्सा बनाते हैं। वहीं, इसके मुकाबले शहरी मतदाता लगभग 95,979 यानी 26.33% हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान इस क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 3,64,523 और मतदान केंद्रों की संख्या 525 थी।
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,84,189 हो गई थी लेकिन, मतदान केंद्रों की संख्या घटकर 395 रह गई थी। मतदान प्रतिशत की बात करें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में 57.38% मतदान दर्ज हुआ था। 2019 के लोकसभा चुनाव में यह प्रतिशत 57.27% था, 2015 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा 58.15% था।
फुलवारी का राजनीतिक इतिहास
फुलवारी विधानसभा क्षेत्र की स्थापना वर्ष 1977 में हुई थी। यहां कुल 12 बार विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) चार बार, कांग्रेस ने तीन बार और जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) ने दो बार जीत हासिल की थी। इसके साथ ही जनता पार्टी, जनता दल और भाकपा (माले-लिबरेशन) ने भी एक-एक बार इस सीट से जीत हासिल की है।
साल 1977 में जनता पार्टी के रामप्रीत पासवान ने सबसे पहले इस सीट पर जीत हासिल की थी। 1980 से 1990 तक संजीव प्रसाद टोनी ने कांग्रेस के टिकट पर लगातार तीन बार इस सीट से जीत हासिल की थी। इसके बाद श्याम रजक साल 1995 में जनता दल और 2000 से 2005 तक राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर इस सीट से विधायक चुने गए थे।
साल 2009 में RJD ने उदय कुमार को इस सीट से टिकट दिया था, जिसके बाद उन्होंने जीत हासिल की थी। साल 2010 में एक बार फिर श्याम रजक ने जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ा था और साट हासिल की थी। 2015 में फिर एक बार वो इस क्षेत्र से विधायक बने थे। इसके बाद 2020 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के गोपाल रविदास ने यहां जीत का परचम लहराया था।
2025 में होगी श्याम रजक की वापसी?
इस सीट पर श्याम रजक अब तक छह बार जीत हासिल कर चुके हैं। वो एक बार जनता दल, तीन बार राजद, और दो बार जदयू के टिकट पर विधायक रह चुके है। श्याम रजक ने एक बार फिर RJD में वापसी की है, जिससे वो आने वाले चुनाव में इस सीट के प्रबल दावेदार हो सकते हैं। हालांकि राजद ने 2020 में यह सीट अपने नए सहयोगी दल भाकपा (माले-लिबरेशन) को दे दी थी। 2020 के चुनाव में 13,857 वोटों के अंतर से जीत हासिल करने के बाद शायह भाकपा (माले) इस सीट को छोड़ने के मूड में न हों।