
Neetu Pandey, नीतू पाण्डेय: यूपी के कुख्यात माफिया मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) के दिन जेल में मुश्किल से बीत रहे हैं. बांदा जेल में बंद मुख्तार की सारी माफियागिरी मिट्टी में मिल गई है. नियमों को ताक पर रखकर, कानून से खेलने वाले मुख्तार पर योगी के कानून का हंटर ऐसा पड़ा है कि उसकी सारी हनक चकनाचूर हो गई है. आलम ये है कि माफिया जेल में छोटी-छोटी चीजों को खाने के लिए तरस रहा है. जिसके लिए वो बार बार अदालत से गुहार लगा रहा है.
आपको बता दें कि कांग्रेस नेता अजय राय के भाई अवधेश राय की वाराणसी शहर के चेतगंज में 3 अगस्त 1991 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. अवधेश राय की हत्या के मामले में आरोप मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) पर लगा था. करीब 32 साल पुराने इस हत्याकांड की सुनवाई अब अंजाम तक आ पहुंची है. वाराणसी के एमपी-एमएलए कोर्ट ने इस मामले में मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) को दोषी करार दे दिया है. बाहुबली मुख्तार अंसारी को वाराणसी की MP MLA कोर्ट ने 32 साल पुराने अवधेश राय हत्याकांड मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है. जैसे ही कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को दोषी करार दिया वैसे ही उसकी बेचैनी बढ़ गई. उसके चेहरे पर तनाव साफ नजर आ रहा था.
मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari), वो नाम जिसकी प्रदेश की सियासत में कभी तूती बोलती थी. सूबे की राजनीति में उसका नाम ही काफी था. वो जब चलता था तो लोगों में खौफ पसर जाता था. जिसके सामने पुलिस के हौसले भी पस्त रहते थे. माफिया से नेता बना मुख्तार (Mukhtar Ansari) खुद को राबिनहुड समझता था. राजनीति पर उसने ऐसी पकड़ बनाई थी कि आलाअधिकारी भी उसके सामने नतमस्तक रहते थे.
जेल में बंद होने के बावजूद उसको 5 स्टार होटल वाली सुविधायें मिलती थीं. कानून को खेल समझने वाले मुख्तार का रूतबा ऐसा था कि अधिकारी उसके साथ बैडमिंटन खेलने जेल जाते थे. हुकुम साहब को मछली पसंद थी. जिसके लिए जेल में तालाब खुदवाया गया था. उस समय की जेलें मुख्तार जैसे अपराधियों की पनाहगार बनी हुईं थीं. इन्हीं जेलों से वो अपने कारनामों का ताना बाना बुनता था. अधिकारियों की सांठगांठ के चलते उसे गैर कानूनी कामों में कभी बाधा नहीं पहुंची थी.
लेकिन बांदा जेल में बंद आज वहीं मुख्तार खाने पीने की चीजों के लिए तरस रहा है. आम और केले जैसे मौसमी फलों के लिए उसे अदालत से गुहार लगानी पड़ रही है. वो जेल के खाने से तरस रहा है. हालत ये है कि एमपी एमएलए कोर्ट में वर्चुअल पेशी के दौरान उसने न्यायाधीश से केले और कुरकुरे की मांग कर की है.
ये वही मुख्तार (Mukhtar Ansari) है जिसकी शौकपसंदगी इतनी थी कि वो जो चाहता था वो खाता था. लेकिन जब से प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ ने संभाली तब से ऐसे माफियाओं का दाना पानी तक बंद हो गया. प्रशासन का हंटर ऐसा चला कि उसके निशान आज भी मुख्तार को सता रहे हैं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि जिस समय मुख्तार बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में फतेहगढ़ जेल में बंद था. इस दौरान उसकी खातिरदारी का पूरा ख्याल रखा जाता था.
कहते हैं कि मुख्तार (Mukhtar Ansari) जेल का सादा खाकर उब गया था. उसको मछली काफी पसंद थी. जिसके लिए जेल में तालाब खुदवाया गया था. मुख्तार तालाब से मछलियां पकड़कर उनको बनवाता था. इतना ही नहीं कई बार तो कई नामी गिरामी नेता और प्रशासन के आलाधिकारी भी उसके डिनर में शामिल होते थे. ऐसा इसलिए था क्योंकि मुख्तार को राजनीतिक शह प्राप्त थी. इस वजह से उसके हौसले आसमान पर थे. आलम ये था कि उस समय के यूपी एसटीएफ के डिप्टी एसपी शैलेंद्र कुमार ने जब उसके खिलाफ पोटा एक्ट में मामला दर्ज कराया. तो लगातार उन पर केस वापस लेने का दवाब बनाया जाने लगा था. अधिकारी से लेकर नेता उनके इस कदम से काफी खफा थे. ये बातें बताने को काफी हैं कि तरह से एक माफिया ने सरकारी मशीनरी को हथियार बनाकर सिस्टम को पंगु बना रखा था.
कानून को खेल समझने वाला मुख्तार (Mukhtar Ansari) लंबे वक्त तक जेल से ही अपने कारनामों को अंजाम देता रहा. आगरा हो या गाजीपुर, लखनऊ हो या बांदा जेल कोई भी हवालात उसके मंसूबों को रोक नहीं पाया. लेकिन आज इसी मुख्तार के दिन ऐसे पलटे कि लोगों को मौत की नींद सुलाने वाला माफिया आज खुद चैन की नींद नहीं सो पा रहा है. आज वही माफिया छोटी से छोटी चीजों के लिए तरस रहा है, उसे रात में नींद नहीं आ रही है.
पहले उसे बिकरू कांड के आरोपी विकास दुबे की तरह की गाड़ी पलटने का डर सता रहा था और अब वो अतीक की मौत से दहशत में है. उसे अपनी भी मौत का डर सता रहा है. तभी तो वो यूपी की जेलों में को खुद को असुरक्षित बताकर दूसरे राज्य में रहना चाहता है. जिसके लिए उसने खूब दांव भी चले. पंजाब की रोपड़ जेल में बंद रहते हुए उसने यूपी में ट्रांसफर ना किए जाने की पूरी कोशिश की.
जब यूपी सरकार ने उसे प्रदेश में लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी. तो उसने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए वहां से ट्रांसफर ना किए जाने की अपील की. यहां तक कि उसने कभी जमानत की अर्जी तक नहीं दी. लेकिन योगी सरकार के आगे उसके सभी दांव फेल हो गए. जिसके बाद उसे रोपड़ से बांदा जेल शिफ्ट किया गया. जिस वजह से कानून को अपनी हनक दिखाने वाला माफिया आज कानून के खौफ में जीवन बिता रहा है. पहली बार उसे कानून का डर समझ में आ रहा है. क्योंकि योगी की विधानसभा में दी गई चेतावनी केवल अतीक के लिए नहीं थी. ये चेतावनी अपराध जगत के उन सभी माफियाओं के लिए थी. जिसने कानून को खिलौना समझने की भूल की थी.