तालिबान ने कवि की कब्र पर लगाया ‘ग्रेटर अफगानिस्तान’ का नक्शा, पाक का यह हिस्सा भी शामिल

काबुल स्थित आमज न्यूज इंग्लिश की रिपोर्ट के अनुसार, इस नक्शे में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और उत्तरी बलूचिस्तान के बड़े हिस्सों को अफगानिस्तान की सीमा के भीतर दिखाया गया है।

7 घंटे पहले

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तालिबान ने अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में मशहूर पश्तो कवि मतिउल्लाह तुराब की कब्र पर "ग्रेटर अफगानिस्तान" का नक्शा लगाया है। काबुल स्थित आमज न्यूज इंग्लिश की रिपोर्ट के अनुसार, इस नक्शे में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और उत्तरी बलूचिस्तान के बड़े हिस्सों को अफगानिस्तान की सीमा के भीतर दिखाया गया है।

आमज न्यूज ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि "एक प्रतीकात्मक कदम उठाते हुए, तालिबान ने प्रसिद्ध पश्तो कवि मतिउल्लाह तुराब की कब्र पर 'ग्रेटर अफगानिस्तान' का नक्शा लगाया है। तालिबान के कथित नक्शे में पाकिस्तान के कुछ हिस्सों को अफ़ग़ानिस्तान के रूप में दिखाया गया है। यह नक्शा ऐसे समय लगाया जा रहा है जब तालिबान के पास तोरखम और स्पिन बोल्डक में चौकियां और सीमा द्वार हैं।"

तनाव के बीच बढ़ती प्रतीकात्मक गतिविधियां

यह विवादित घटना ऐसे समय सामने आई है जब रियाद में हुए ताजा युद्धविराम के बावजूद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच संबंध बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं। अक्टूबर में हुआ पिछला युद्धविराम कुछ ही दिनों में टूट गया था, और दोनों देशों ने एक-दूसरे पर सीमा पार हमले जारी रखे थे।

नवंबर के अंतिम सप्ताह में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के तीन प्रांतों खासतौर पर खोस्त पर बमबारी की। इस हमले में नौ बच्चों और एक महिला की मौत हुई। पाकिस्तान ने दावा किया था कि यह कार्रवाई टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) द्वारा पेशावर में किए गए आत्मघाती हमले की प्रतिक्रिया में की गई थी, जिसमें तीन पुलिसकर्मी मारे गए थे।

पिछले तीन महीनों से दोनों देशों के बीच संघर्ष और आरोप-प्रत्यारोप लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में "ग्रेटर अफगानिस्तान" का नक्शा सार्वजनिक स्थान पर लगाना पाकिस्तान के लिए उकसाने वाली कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है। खासकर इसलिए क्योंकि नक्शे में दिखाए गए क्षेत्र जातीय रूप से पश्तून समुदाय से जुड़े हैं।

मतिउल्लाह तुराब- दोनों देशों में सम्मानित कवि

जिस कवि की कब्र पर यह विवादित नक्शा लगाया गया है, वे मतिउल्लाह तुराब पश्तो साहित्य की एक प्रमुख हस्ती थे।
1971 में नंगरहार में जन्मे तुराब औपचारिक शिक्षा के बिना ही अपने क्रांतिकारी और राष्ट्रवादी लेखन के लिए प्रसिद्ध हुए। उनकी रचनाएं जैसे "घुबार पर हिंदरो" और "स्पीन बघावत" पश्तून पहचान, संघर्ष और साहस के विषयों पर केंद्रित थीं।

तुराब को "बेजुबानों की आवाज" के नाम से भी जाना जाता था। वे न सिर्फ कवि थे, बल्कि जीविका चलाने के लिए धातुकर्मी का काम भी करते थे। उनकी लोकप्रियता केवल अफगानिस्तान तक सीमित नहीं थी पाकिस्तान के पश्तो भाषी इलाकों में भी वे समान रूप से प्रशंसित थे। 14 जुलाई 2025 को खोस्त प्रांत में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ। वे 54 साल के थे।

कब्र की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल

सोशल मीडिया पर तुराब की कब्र की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें उनकी कब्र के ऊपर सीमेंट से बना 'ग्रेटर अफगानिस्तान' का नक्शा स्पष्ट दिख रहा है। 1947 में पाकिस्तान की स्थापना के बाद से दोनों देशों के बीच 2,640 किलोमीटर लंबी डूरंड रेखा को लेकर विवाद जारी है। अफगानिस्तान ने इस सीमा को कभी औपचारिक तौर पर मंजूर नहीं किया है, क्योंकि यह पश्तून समुदाय को दो देशों में बांटती है।

अब तक न तो तालिबान के विदेश मंत्रालय और न ही पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने इस घटना पर कोई आधिकारिक टिप्पणी की है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम तालिबान द्वारा पाकिस्तान के साथ मौजूदा सीमा व्यवस्था को अस्वीकार करने वाला एक और सार्वजनिक संकेत है।

-Shraddha Mishra

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