डॉलर के मुकाबले रुपये में भारी गिरावट, निवेशकों से लेकर विदेशी छात्रों तक की बढ़ी चिंता

अमेरिकी डॉलक के मुकाबले में बुधवार को भारतीय रुपया 90.13 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया है। रुपये की तेज गिरावट का प्रभाव भारतीय शेयर बाजारों में साफ दिख रहा है।

03 December 2025

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अमेरिकी डॉलक के मुकाबले में बुधवार को भारतीय रुपया 90.13 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया है। पिछले दिन के 89.9475 के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए भारतीय रुपये में लगातार पांचवें कारोबारी सत्र में गिरावट देखने को मिली। यह गिरावट कमजोर व्यापार-पोर्टफोलियो फलो और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता के बीच आई।

गिरावट का प्रभाव

रुपये की तेज गिरावट का प्रभाव भारतीय शेयर बाजारों में साफ दिखा।
-निफ्टी 26,000 के नीचे फिसल गया।
-सेंसेक्स शुरुआती ट्रेड में करीब 200 अंक गिरा, क्योंकि निवेशक बढ़ती मुद्रास्फीति और एफआईआई की संभावित बिक्री को लेकर चिंतित दिखे।

आरबीआई ने हाल के दिनों में डॉलर-रुपया बाजार में सक्रिय हस्तक्षेप कम किया है, जिससे बाजार में अस्थिरता और आशंकाएं बढ़ गई हैं।

क्यों लगातार कमजोर हो रहा है रुपया?

रुपये पर दबाव कई कारणों से बना हुआ है:
-आयातकों की ओर से डॉलर की बढ़ती मांग
-कमजोर पूंजी प्रवाह और एफपीआई की सुस्त गतिविधि
-सट्टेबाजी और शॉर्ट-कवरिंग की स्थिति
-भारत-अमेरिका व्यापार सौदे पर अनिश्चितता
-एशियाई मुद्राओं में व्यापक कमजोरी का प्रभाव

कमजोर रुपये का व्यापक असर

रुपये के कमजोर होने से आयातित वस्तुएं जैसे कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी,आदि महंगी हो जाती हैं। इससे घरेलू महंगाई बढ़ने का खतरा होता है। विमानन, ऑटोमोबाइल और फार्मा जैसे उद्योगों की लागत भी बढ़ जाती है, क्योंकि इन्हें विदेशी मुद्रा में बड़े पैमाने पर भुगतान करना पड़ता है। इसके अलावा, रुपये की गिरावट का सबसे बड़ा प्रभाव विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों पर पड़ता है।

विदेश में पढ़ रहे भारतीय छात्रों पर असर

2024 में लगभग 7.6 लाख भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए। 2025 की शुरुआत में डॉलर के मुकाबले 84 रुपये के आसपास रहने वाला रूपया अब 90 से ऊपर पहुंच गया है, यानी लगभग 7% की कमजोरी। इससे अंतरराष्ट्रीय शिक्षा पहले से कहीं ज़्यादा महंगी हो गई है।

विदेशी शिक्षा को वैश्विक सेवा निर्यात माना जाता है, इसलिए रुपये की गिरावट के साथ लगभग हर खर्च जैसे ट्यूशन फीस, आवास, वीजा शुल्क, बीमा, रोजमर्रा के खर्च और यहां तक कि काउंसलिंग सेवाएं बढ़ जाता है।

क्या आरबीआई कदम उठाएगा?

विशेषज्ञों का मानना है कि रुपया लगातार गिरावट की ओर बढ़ रहा है, लेकिन आरबीआई का मजबूत हस्तक्षेप स्थिति को नियंत्रित कर सकता है। फिलहाल केंद्रीय बैंक बाजार को अधिक लचीलापन दे रहा है, लेकिन दबाव बढ़ने पर उसकी रणनीति बदल सकती है।

-Shraddha Mishra

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