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- Sat, 21st Dec, 2024
New Delhi: Uttarkashi Tunnel Rescue: Siya Ram: उत्तराखंड के उत्तरकाशी टनल में फंसे 41 मजदूरों के लिए आज की सुबह रोशनी भरी थी. इन मजदूरों ने 17 दिन दिनों तक सुरंग के अंधेरे में समय गुजारने के बाद आज बुधवार की सुबह नई रोशनी देखी. इन मजदूरों को सुंरग से निकालने के लिए रैट माइनिंग तकनीक के जरिए मैन्युअल ड्रिलिंग की गई. इस तकनीक को रेट हाल तकनीक के नाम से भी जाना जाता हैं. 12 एक्सलपर्ट्स की टीम इस काम में लगे हुए थे. आखिरकार सबकी कड़ी मेहनत रंग लायी और सभी मजदूरों को टनल से एकदम सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया.लेकिन क्या आपको पता हैं कि मजदूरों को निकालने के लिए जिस रेट होल तकनीक का प्रयोग किया गया था उसे साल 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यू नल (National Green Tribunal- NGT) ने बैंन कर दिया था.
क्या है रेट होल तकनीक
'रैट-होल' शब्दट जमीन में खोदे गए संकरे गड्ढों को दर्शाता है. इस तकनीक से सक्रिय क्षेत्र से खादानों से कोयले को निकाला जाता हैं. इस बीच कुशल कारीगर मैनुअल तरीके से बेहद संकीर्ण सुरंग तैयार करते हैं. सुरंग के तैयार होने के बाद खदानों में काम करने वाले मजदूर नीचे उतर कर कोयले को खदानों से बाहर निकालते हैं. यह सुरंगी इतनी सकरी होती है कि एक समय में एक ही आदमी सुरंग में घुस पता हैं.एक बार गड्ढे खोदने के बाद कोयले की परतों तक पहुंचाने के लिए मजदूर एक बार गड्ढे खुदने के बाद कोयले की परतों तक पहुंचने के लिए मजदूर रस्सियों या बांस की सीढ़ियों का प्रयोग करते हैं.फिर कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे उपकरणों का इस्ते माल करके बाहर निकाला जाता है. इसी तकनीक की मदद से टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकाला गया है.
भारत में रेट होल तकनीक को क्यों गया गया बेन?
'रैट-होल' तकनीक मजदूरों के लिए बहुत खतरनाक साबित होती हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए मजदूर बिना किसी सुरक्षा उपकरण के गड्ढे में उतर जाते हैं और कई बार ऊपर से मलबा धंस जाने के कारण इसी में फंस जाते हैं जिससे कई बार मजदूरों की जान गवाने की भी खबरें सामने आते हैं. मजदूरों के सुरक्षा के लिहाज से साल 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूगनल (National Green Tribunal- NGT) ने बैंन कर दिया था