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वायनाड के सांसद राहुल गांधी ने एक बार फिर से पीएम मोदी को लेकर बयान दिया और ये बयान भी सोशल मीडिया में तेजी के साथ वायरल हुआ है...भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने ओडिशाके झारसुगुड़ा में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जब भी कोई भाजपा कार्यकर्ता आपके पास आए, तो उसे एक बात बताएं कि हमारे प्रधानमंत्री ने पूरे देश से झूठ बोला है.
राहुल गांधी ने पीएम मोदी को कागजी ओबीसी कहा है...कांग्रेस सांसद ने कहा, “सबसे पहले मैं ये बता देना चाहता हूं कि मोदीजी ओबीसी में पैदा नहीं हुए थे..आप लोगों को भयंकर बेवकूफ बनाया जा रहा है, नरेंद्र मोदी जी तेली जाति में पैदा हुए...उनके समुदाय को बीजेपी सरकार ने साल 2000 में ओबीसी का दर्जा दिया..वो सामान्य वर्ग में पैदा हुए थे..ये पूरी दुनिया में झूठ बोल रहे हैं कि मैं ओबीसी पैदा हुआ.
अब आइए आपको बताते है कि इस बयान के पीछे की असलियत क्या है और इसको ओबीसी में शामिल करने को लेकर पीएम मोदी पर निशाना क्यों साधने की कोशिश की गयी है.
पीएम की जाति में 1999 और 2002 का साल क्यों है जरुरी?
गुजरात की 104 जातियों को ओबीसी की केंद्रीय सूची (प्रविष्टि संख्या 23) में शामिल किया गया है...लिस्ट में ‘घांची (मुस्लिम), तेली, मोढ़ घांची, तेली-साहू, तेली-राठौड़, तेली-राठौड़’ शामिल हैं...इन सभी समुदायों को पारंपरिक रूप से खाद्य तेलों बनाने और उसका व्यापार करने के लिए जाना जाता है...पूर्वी यूपी में रहने वाले इन समुदायों के सदस्य आम तौर पर गुप्ता उपनाम का उपयोग करते हैं...कुछ लोग मोदी सरनेम भी लगाते हैं.
जब 1993 में ‘मंडल’ आरक्षण के कार्यान्वयन के बाद ओबीसी की पहली केंद्रीय सूची अधिसूचित की गई थी...इसके अलावा अक्टूबर 1999 में मुस्लिम घांची समुदाय को राज्य के कुछ अन्य समुदायों जैसे तेली, मोढ़ घांची और मालीके साथ ओबीसी की केंद्रीय सूची में जोड़ा गया था...इस प्रकार, मोढ़ घांची यानि जिस समाज से प्रधानमंत्री मोदी आते हैं..उसे उनके पहली बार गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से लगभग 18 महीने पहले यानि 27 अक्टूबर, 2001 को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल किया गया था. एक आरटीआई के जरिए जानकारी दी गयी है कि मोढ़-घांची समाज को 2002 में गुजरात में ओबीसी की सूची में शामिल किया गया था...जनवरी 2002 में गुजरात सरकार ने इस संबंध में एक सुर्कलर जारी किया था.
अन्य धर्मों के लोग भी लगाते हैं ‘मोदी’ सरनेम!
मोदी सरनेम का इस्तेमाल कई समाजों के लोग करते हैं...यह किसी विशिष्ट समुदाय या जाति को नहीं दर्शाता है...गुजरात में मोदी उपनाम का उपयोग हिंदू, मुस्लिम और पारसी द्वारा किया जाता है...वैश्य (बनिया), खरवास (पोरबंदर के मछुआरे) और लोहाना (जो व्यापारियों का एक समुदाय हैं) समुदाय में मोदी उपनाम का इस्तेमाल करने वाले लोग आसानी से मिल जाते हैं.
उदाहरण के तौर पर IPL के संस्थापक ललित मोदी के दादा, राय बहादुर गुजरमल मोदी, महेंद्रगढ़ से मेरठ के पास जाकर बस गए, बाद में उस जगह का नाम बदलकर मोदीनगर कर दिया गया...भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी गुजरात के जामनगर का रहने वाला है, जो पारंपरिक रूप से हीरे के व्यापार में लगा हुआ है...टाटा स्टील के पूर्व अध्यक्ष रूसी मोदी और फिल्मी दुनिया के सोहराब मोदी मुंबई के पारसी थे.
क्या मोदी उपनाम वाले लोग केवल गुजरात में रहते हैं?
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. गुजरात के अलावा यूपी और बिहार में भी मोदी उपनाम वाले लोग रहते हैं...यह उपनाम उन मारवाड़ियों द्वारा भी खूब इस्तेमाल किया जाता है, जो अग्रवालों के समूह से हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे हरियाणा के हिसार स्थित अग्रोहा के थे और बाद में हरियाणा के महेंद्रगढ़ और राजस्थान के झुंझुनू और सीकर जैसे जिलों में फैल गए.
क्या मोदी सरनेम का संबंध ओबीसी से ही है ?
इसका जवाब है- नहीं..सभी ‘मोदी’ ओबीसी वर्ग से ताल्लुक नहीं रखते…दरअसल, नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था के लिए बनी ओबीसी की केंद्रीय सूची में ‘मोदी’ नाम का कोई समुदाय या जाति नहीं है. ओबीसी की केंद्रीय सूची में सूचीबद्ध बिहार के 136 समुदायों में कोई “मोदी” नहीं है…हालांकि तेली समुदाय को सूची में शामिल किया गया है…केंद्रीय ओबीसी सूची में राजस्थान के 68 समुदायों में ‘तेली’ समुदाय का नाम है. लेकिन ‘मोदी’ नाम का कोई समुदाय सूचीबद्ध नहीं है.
TNP न्यूज़ से अमजद खान की रिपोर्ट.