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- Sat, 12th Oct, 2024
बिहार में नीतीश कुमार की सरकार को हाई कोर्ट से आरक्षण के मुद्दे पर बड़ा झटका लगा है. हाई कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के सरकार के फैसले को रद्द कर दिया है.
जातीय जनगणना के बाद बिहार सरकार ने आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का फैसला किया था. अदालत के इस फैसले के बाद बिहार में पहले से निर्धारित आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत ही रहेगी.
क्या कहा पटना हाई कोर्ट ने ?
पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया. याचिकाकर्ता गौरव कुमार और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई पहले ही पूरी कर ली गई थी और फैसला 11 मार्च को सुरक्षित रख लिया था. अब बिहार सरकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर जा सकती है.
पटना हाई कोर्ट का मानना है कि आरक्षण की जो सीमा पहले से ही निर्धारित है, उसे बढ़ाया नहीं जा सकता है. अदालत ने माना कि ये निर्णय नियमावली के खिलाफ है. हाई कोर्ट ने कहा कि अगर आरक्षण की सीमा बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी तो ये संवैधानिक बेंच ही तय करेगी. इससे ये साफ हो गया है कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पास जाएगा.
जाति आधारित गणना के बाद आरक्षण बढ़ाने का लिया था फैसला
बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना कराई थी जिसके बाद विधानसभा के पटल पर राज्य के आर्थिक और शैक्षणिक आंकड़े रखे गए थे. सरकार ने बताया था कि राज्य की सरकारी नौकरियों में किस वर्ग की कितनी हिस्सेदारी है.
आंकड़े जारी करने के बाद सरकार ने शिक्षण संस्थानों व सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को मिलने वाले आरक्षण सीमा बढ़ाकर 65 फीसदी कर दी थी. इसके साथ ही 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को मिलता था।.
इस तरह कुल मिलाकर बिहार में नौकरी और दाखिले का कोटा बढ़ाकर 75 फीसदी पहुंच चुका था. सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थी.