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बिहार की राजनीति में इस बार दिलचस्प समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आ रहे हैं। जहां एक ओर महागठबंधन की दो युवा ताकतें राहुल गांधी और तेजस्वी यादव सीट बंटवारे के मुद्दे पर एकमत नहीं हो पा रहीं, वहीं दूसरी ओर NDA खेमा सीट बटवारे के शुरुआती दौर में हुए मतभेद के बाद अब काफी एकजुट दिख रहा है।
सीट बंटवारे पर ‘दोस्ती’ में दरार
कांग्रेस और राजद के बीच सीटों को लेकर टकराव खुलकर सामने आ गया है। महागठबंधन में 'फ्रेंडली फाइट' के नाम पर दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी खड़ा कर चुके हैं। वैशाली, लालगंज, कहलगांव और राजापाकड़ जैसी कई सीटों पर दोनों पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला है। कांग्रेस के नेता राजेश राम जहां दावा कर रहे हैं कि इस लड़ाई में कोई दोस्ती नहीं है, वहीं राजद उम्मीदवार सुरेश पासवान ने इसे 'फ्रेंडली फाइट' बताया है। लेकिन सच्चाई यही है कि महागठबंधन के अंदरूनी हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।
कांग्रेस में घमासान, राजद में नाराजगी
कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिशों को दरकिनार कर ऐसे चेहरों को टिकट मिला है, जिनका पार्टी से पुराना जुड़ाव नहीं रहा। वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने भी इस पर खुलकर सवाल उठाते हुए पुछा कि, "जो कल तक कांग्रेस को कोसते थे, उन्हें टिकट कैसे?" साथ ही योगेंद्र यादव के करीबी अनुपम को टिकट मिलने से पार्टी के भीतर विरोध की लहर उठ खड़ी हुई है। राजद में भी कई सीटों पर कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच असंतोष गहराता जा रहा है। कांग्रेस में नेतृत्व की संवादहीनता और राजद के कुछ फैसलों से गठबंधन की 'एकजुटता' सवालों के घेरे में है।
एनडीए में दिखा अनुशासन और रणनीति
वहीं, एनडीए खेमे में शुरुआती मतभेदों के बाद अब स्पष्ट एकता नजर आ रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने खुद मोर्चा संभालते हुए जेडीयू और बीजेपी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया है। पटना में बैठकों का दौर चला और कई विवादित सीटों पर समझौते करवा कर उन्होंने पार्टी को दोबारा मजबूती दी। पप्पू सिंह और अन्य बागी प्रत्याशियों को मनाकर पार्टी के लिए मुश्किल हालात संभाले गए।
मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां, राहुल की गैरमौजूदगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में चुनावी प्रचार की कमान संभाले हुए हैं और आने वाले दिनों में 12 बड़ी जनसभाएं करेंगे। 23 अक्टूबर से शुरू हो रही रैलियों में सासाराम, गया, भागलपुर, पटना, दरभंगा और अररिया जैसे इलाके शामिल हैं। मोदी की रैलियों से एनडीए का प्रचार अभियान और तेज हो गया है।
वहीं, राहुल गांधी की सक्रियता की कमी साफ झलक रही है। टिकट वितरण के वक्त तो उन्होंने खूब आवाज उठाई, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आए, वे बिहार की राजनीति से दूर होते दिखे। इसका असर कांग्रेस की जमीनी तैयारी पर भी पड़ा है।
-Shraddha Mishra