
उत्तर भारत की जीवनरेखा मानी जाने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला एक बार फिर राजनीतिक और पर्यावरणीय बहस के केंद्र में आ गई है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें अरावली पहाड़ियों की संशोधित परिभाषा को स्वीकार किया गया है।
कांग्रेस का आरोप है कि इस फैसले से देश के सबसे संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्रों में से एक को भारी नुकसान पहुंच सकता है।
कांग्रेस का आरोप: सरकार पर्यावरण से कर रही है खिलवाड़
कांग्रेस नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि सरकार पर्यावरण सुरक्षा को कमजोर कर रही है और अरावली जैसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक क्षेत्र को खनन और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए खोलने की तैयारी में है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास ने साफ शब्दों में कहा कि उनकी पार्टी अरावली पहाड़ियों को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी फैसले का विरोध करेगी।
“किसी भी कीमत पर अरावली को नुकसान नहीं” : खाचरियावास
खाचरियावास ने कहा, “कांग्रेस का रुख बिल्कुल साफ है कि अरावली पहाड़ियों को किसी भी कीमत पर नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। भाजपा को यह फैसला वापस लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सरकार द्वारा बनाई गई समिति की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसे हम स्वीकार नहीं करते।”
सोनिया गांधी का तीखा हमला
इससे पहले कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी केंद्र सरकार पर हमला बोला था। उन्होंने अरावली की परिभाषा में बदलाव को पहाड़ियों के लिए “मृत्यु का फरमान” बताया।
सोनिया गांधी ने कहा कि जंगलों की कटाई और स्थानीय लोगों को उनके इलाकों से बेदखल करना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की भावना के खिलाफ है।
कानूनों में बदलाव वापस लेने की मांग
कांग्रेस ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980
वन संरक्षण नियम, 2022
में किए गए संशोधनों को वापस ले। पार्टी का कहना है कि इन बदलावों से जंगलों और पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या कहता है?
20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ, जिसकी अध्यक्षता पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई कर रहे थे, ने पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई अरावली की नई परिभाषा को स्वीकार किया था।
Saurabh Dwivedi


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