
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। हर साल की तरह इस बार भी अक्टूबर और नवंबर में हवा बहुत खराब से गंभीर श्रेणी में पहुंच गई। लोग सांस से जुड़ी बीमारियों, आंखों में जलन और गले में खराश की समस्याएं झेल रहे हैं। लेकिन इस बार एक खास बात है पराली जलाने की घटनाएं कई सालों की तुलना में काफी कम हुई हैं, फिर भी हवा में जहर क्यों घुल रहा है?
पराली जिम्मेदार नहीं, स्थानीय प्रदूषण ज्यादा
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट के अनुसार, इस बार प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहनों और स्थानीय स्रोतों से निकलने वाला धुआं है, न कि पराली जलाना। शोध में पाया गया कि हवा में PM 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की मात्रा बहुत तेजी से बढ़ी है। ये प्रदूषक मुख्य रूप से गाड़ियों से निकलते हैं और सर्दियों में नीचे की ओर जम जाते हैं, क्योंकि ठंड में हवा ऊपर नहीं उठ पाती।
ट्रैफिक पीक टाइम पर हालत और खराब
रिपोर्ट बताती है कि सुबह 7–10 बजे और शाम 6–9 बजे प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक होता है।
सड़क पर वाहनों की भारी भीड़
गाड़ियों से निकलने वाला धुआं
ठंडी मौसम में धुंध के नीचे फंसा प्रदूषण
इन समयों में PM2.5 और NO2 दोनों एक साथ बढ़ते हैं, जिससे यह साबित होता है कि ट्रैफिक प्रदूषण सबसे बड़ा कारण बन गया है।
फिर क्या किया जा रहा है?
सीएसई की डायरेक्टर अनुमिता रॉयचौधरी के अनुसार, सरकार अक्सर सिर्फ धूल नियंत्रण पर ध्यान देती है, जबकि गाड़ियां, उद्योग, कचरा जलाना और ठोस ईंधन जैसे बड़े कारणों पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं होती। इस साल पंजाब हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं कम हुईं, जिसका कारण बाढ़ से प्रभावित फसल चक्र भी रहा, लेकिन हमारी हवा फिर भी साफ नहीं हुई।
Saurabh Dwivedi


.jpg)
.jpg)





.jpg)

