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ईरान और इज़रायल के बीच जारी टकराव अब और बढ़ गया है। अमेरिका ने दावा किया है कि उसने ईरान के तीन बड़े परमाणु ठिकानों फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर हवाई हमला किया है। अमेरिका और इजरायल का कहना है कि ईरान अब परमाणु बम बनाने के बहुत करीब है, लेकिन ईरान इन आरोपों से लगातार इनकार करता आया है।
अमेरिका ने ही रखी थी ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम की नींव
यह बात है 1950 के दशक की, जब अमेरिका के राष्ट्रपति थे ड्वाइट आइजनहावर और ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन था। दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ और अमेरिका ने ईरान को असैन्य (नॉन-मिलिट्री) परमाणु तकनीक में मदद दी। इस मदद से ईरान ने अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम की शुरुआत की।
1970 में ईरान ने परमाणु हथियारों के फैलाव को रोकने वाली संधि (NPT) पर दस्तखत किए और इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) को अपनी साइट्स दिखाने की सहमति दी। लेकिन इसके कुछ साल बाद 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हो गई और सारी स्थिति बदल गई।
छिपे ठिकानों का खुलासा और बढ़ता शक
2000 के बाद कुछ ऐसे परमाणु ठिकानों का पता चला, जिनकी जानकारी ईरान ने कभी नहीं दी थी। फिर 2011 में IAEA की रिपोर्ट ने यह बताया कि 2003 तक ईरान ने हथियार बनाने से जुड़ी कई गतिविधियां की थीं। इस पर दुनिया भर में हंगामा मच गया और ईरान पर कई सख्त प्रतिबंध लगाए गए।
बाद में बातचीत शुरू हुई और 2015 में ईरान, अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी के साथ एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन कहा गया।
2015 का समझौता और ट्रंप का फैसला
इस समझौते के तहत ईरान पर लगे प्रतिबंधों में राहत दी गई, लेकिन उसे अपनी परमाणु गतिविधियों को सीमित करना पड़ा। जैसे वो यूरेनियम को सिर्फ 3.67% तक ही शुद्ध कर सकता था और भंडार की सीमा 202.8 किलो तय की गई थी।
लेकिन जब 2016 में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने 2018 में अमेरिका को इस समझौते से बाहर कर लिया और ईरान पर दोबारा कड़े प्रतिबंध लगा दिए।
ईरान का जवाब और बढ़ता यूरेनियम भंडार
ट्रंप के फैसले से नाराज होकर ईरान ने समझौते के नियम तोड़ने शुरू किए। पहले 5%, फिर 20%, और फिर 60% तक यूरेनियम को शुद्ध किया गया। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि न्यूक्लियर बम बनाने के लिए 90% शुद्ध यूरेनियम चाहिए होता है।
IAEA के अनुसार, ईरान के पास अब समझौते की तय सीमा से 45 गुना ज़्यादा यूरेनियम है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इतने यूरेनियम से ईरान 9 या उससे ज्यादा परमाणु बम बना सकता है।
फिर से बातचीत की कोशिशें
पश्चिमी देश लगातार ईरान से समझौते पर लौटने की मांग कर रहे हैं। बातचीत यूरोप और अमेरिका दोनों से हुई, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। हां, यह बात भी सही है कि केवल यूरेनियम एनरिचमेंट से बम नहीं बनता। इसके लिए और भी कई तकनीकी प्रक्रियाएं करनी होती हैं।
ईरान का कहना है कि उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम सिर्फ बिजली और चिकित्सा के लिए है और उनके सर्वोच्च नेता खामेनेई खुद परमाणु हथियारों के खिलाफ हैं। लेकिन सवाल अब भी बरकरार है अगर मकसद सिर्फ ऊर्जा है, तो फिर इतना ज़्यादा यूरेनियम क्यों जमा किया जा रहा है?
- YUJTI RAI